आपके जानिसार हो जायें
आदमी में शुमार हो जाएँ

लोग उठा के लगायें आँखों से
इस कदर खाकसार हो जाएँ

अपना किरदार क्या तमाशा है
अब से सोगवार हो जाएँ

राहेजन हो चले हैं मुखालिश
राह -रवौ होशियार हो जाएँ

इश्क का एक मुकाम ये भी है
हुस्न के राजदान हो जाएँ

कह सके न गर जबान तो
आँखें ही अस्कबार हो जायें

क्या थे, क्या हो गए आप
सोच लें तो शर्मसार हो जायें!

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रफ्ता-रफ्ता तेरी सोहबत में जिन्दगेई हो रही खुश्गवा

तुझे ख़बर नही शायद की तू बन गई है मेरी रहनुमा

अभी तक जीता आया है गफलत की ये बेमुराद जिंदगी "रूमी"

तेरे इश्क का असर है की बदला-बदला सा नज़र आता है हुज़ूर का अंदाजे बयां





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तुम्हे समझने की हम हर घरी कोशिस करते हैं

न जाने क्यों तुमसे अपना हाले दिल कहने से डरते हैं

हर एक पल तेरा रुखसार देखने तो तरसता है "रूमी"

तुझे कितना प्यार करते हैं ये हम नही जानते हैं!


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बिखरा हुआ है तेरा ही नूर चारो सू

जिधर देखता हूँ उधर है तू ही तू
तेरा नाम रहता है हर वक्त जबान पर
"रूमी" की जुस्तजू तू , है मेरी आरजू!

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जान लेना नही हमने जान देना सीखा है
अब
तक तो सीर्फ दूसरो के लीये जीना सीखा है
मोहब्बत
के दरबार में बैठ कर रूमी ने
फ़क़त
नीमबाज आंखों से पीना सीखा है

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जाने क्यों मेरे साथ ये फ़साना हुआ
तू समां हुई और मैं परवाना हुआ
खुदा के बाद नाम तेरा ही लेता है रूमी
तेरे इश्क मैं इस कदर दीवाना हुआ

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अब और गम के आंसू हम पीना नही चाहते,

खोया है बहुत कुछ तुम्हे हम खोना नही चाहते,
हमारे हाले बेबस से तो तुम वाकिफ हो ऐ दोस्त,
हम यह दोहरी जिंदगी अब जीना नही चाहते!

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जिंदगी

जिंदगी से अंत में हम उतना ही पाते हैं
जितना उसमे मेहनत की पूँजी लगते हैं!

पूँजी लगना संकट का सामना करना है
उसके हर इक पन्ने को उलट कर पढ़ना है

जिंदगी में गर हम आप ही आप रहे तो क्या रहे
फ़क़त खुशियों के लहरों में बहे तो क्या बहे

जिंदगी में है "रूमी" कभी खुसी तो कभी गम
जीना उसे आया जो किसी खुशी को न समझे कम !

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देखा है !

हमने गिरते हुओं को सँभालते देखा है,

संभाले हुए लोगों को फिसलते देखा है,

जिंदगी में आप कभी हिम्मत न हारना "रूमी"

हमने काँटों के बीच ही गुल खिलते देखा है!

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पान (कुण्डलिया)

मेरे द्वारा रचित
प्रविष्टियाँ पढ़ें





पान मान के खाइए, भले चूना-खैर
दिल से दिल मिलाइए, हो किसी से बैरहो किसी से बैर,मिलकर रहें सब एक
सत्य-पथ पर चलकर काम करें कोई नेक
"
रूमी" की है फरियाद, पाना है गर सम्मान
ऐसी वाणी बोलिए की दुश्मन खिलावे पान !

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मनहर (सवैया)


उठो, जागो ए भारत माता के वीर जवानों,
दुश्मन को हमें ही सबक सिखाना होगा
धर्म के नाम पर लड़ाने वालों को अब तो
अपनी एकता का अर्थ समझाना होगा
अब भी गर हम चुप-चाप बैठे रहे तो
धर्म-स्थल ही क्या,पूरा देश निशाना होगा
इक-दो आतंकवादियों से कुछ न होगा "रूमी"
आतंकवाद को ही जड़ से मिटाना होगा!

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खेल !

जाने लोग कैसा-कैसा खेल खेलते हैं
पल भर में कैसा गिरगिट सा रंग बदलते हैं
आप हर इक कदम फूँक-फूँक कर रखना "रूमी"
यहाँ
अपने सिखाये ही अपने पर चाल चलते हैं!!

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nari


नारी समपूर्ण संसार की शक्ति है
इसके इज्जत में ही सच्ची भक्ति है




यही पत्नी,पुत्री,बहन,और माता है
इसका समस्त मानव जाती से नाता है


नर में कर्तव्य भावना जगती है
लालच-कपट को कोशो दूर भगाती  है

इसका पूरा हृदय ममता से भरा है
कोई नही संसार में इससे खरा है

 
इसके संतोष की नही कोई सीमा
इसके तेज के आगे पड़ता रवि धीमा


वास्तव में "रूमी" नारी सृष्टि का रूप है
यह तो भगवन का ही दूसरा स्वरुप है!

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एकता !

देश का नागरिक पहले भारतीये है

सब का एक धर्म, एक ही जातिये है
पहले सब एक दुसरे के भाई हैं
फिर हिंदू,मुस्लिम,सिख,इसाई हैं!



परन्तु आज सारा भारत जल रहा है
नेताओं के सह पर आतंक पल रहा है
देश में हर तरफ़ मतभेद चल रहा है
प्रशासन भी चुप-चाप हाथ मल रहा ही



यहाँ के नेता वोट बनानेआने के लिए
सत्ता-सुख, एश्वर्य हथियाने के लिए
धर्म के नाम पर फूट दल देते हैं
एकता को अनेकता में ढाल देते हैं



नेताओं की लोगों ज्यादा क्या मैं बात करूं
क्यों मैं मुफ्त में ही अपना वक्त बर्बाद करूं
पहुंचाना चाहता हूँ फ़क़त यही एक संदेश
मिल-जुल कर रहना ही हो हमारा उद्देश !






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मजदूर


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

दुनिया का आठवां अजूबा ताजमहल हों

राजाओं-महराजाओं का राजमहल हों


अजंता-अलोरा की दुर्गम गुफाएं हों

या कुतुब मीनार जैसी अट्टालिकायें हों


ये सब है मजदूरों के अथक परिश्रम से

है विकास सम्भव सिर्फ़ इन्हीं के श्रम से


दूसरो के लिए मकान ये ही बनते हैं

परन्तु अपना ही घर बना नहीं पाते हैं


औरों को बुनकर कई वस्त्र पहनाते हैं

गो की ख़ुद इक लगोंटी को तरस जाते हैं


इनके दशा का एक कारन है अधिक गरीबी

है नहीं इनका कोई मददगार करीबी


करना होगा मजदूरों को भी हमें सिक्छित

तब कहीं हो सकेगा भारत का भविष्य सुरक्छित !

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गुरबत के पहाड़ !


इक दिन ये गुरबत के पहाड़ भी हिल जायेंगे


हमारे अपने इक बार फिर हमसे मिल जायेंगे


वक्त से पहले इस दुनिया में कुछ नही होता "रूमी"


इक दिन हमारे किश्मत के फूल भी खिल जायेंगे!


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उफ़ इन्सानिअत!

यह कहकर दिल ने हौसले बढाये हैं
ग़मों के बाद ही खुशियों के साये हैं

गर्दिस मैं जिसको भी सदा दिया हमने
सबने अपने पैर पीछे को हटाये हैं

क्या कहें, किस्से कहें हम अपनी दास्ताँ
यहाँ तो सब के ही चेहरे मुरझाये हैं

उनका तो महज इक दिल ही टूटा
हमने तो आंखों से लहू बहाए हैं

फ़क़त इक इंसानियत के खातिर "रूमी"
हजारों चोट हमने दिल पर खाए हैं !!

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कैसी है बेखबरी किस खल्जान में है

अपनी तलवार जब अपने म्यान में है

खिंजा के बाद बहार भी आती है ज़रूर

फिजा में घोल कर ज़हर तू किस गुमान में है

वह जो खुरंचता है मांग का सिन्दूर यहाँ

उसी का बोलबाला सारे जहाँ में है

ज़माना हो चला है आज मेरा दुश्मन

न जाने कैसा खर मेरी जबान में है

तल्खियां सब उल्फत में बदल जाएँगी "रूमी"

गर शौक-ऐ-गुफ्तगू हमारे दरम्यान में है।



शेर खान "रूमी"

काशी हिंदू विश्यविद्यालय

बनारस


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