आपके जानिसार हो जायें
आदमी में शुमार हो जाएँ
लोग उठा के लगायें आँखों से
इस कदर खाकसार हो जाएँ
अपना किरदार क्या तमाशा है
अब से सोगवार हो जाएँ
राहेजन हो चले हैं मुखालिश
राह -रवौ होशियार हो जाएँ
इश्क का एक मुकाम ये भी है
हुस्न के राजदान हो जाएँ
कह सके न गर जबान तो
आँखें ही अस्कबार हो जायें
क्या थे, क्या हो गए आप
सोच लें तो शर्मसार हो जायें!
| at 4:36 AM
| at 4:23 AM
तुम्हे समझने की हम हर घरी कोशिस करते हैं
न जाने क्यों तुमसे अपना हाले दिल कहने से डरते हैं
हर एक पल तेरा रुखसार देखने तो तरसता है "रूमी"
तुझे कितना प्यार करते हैं ये हम नही जानते हैं!
| at 4:16 AM
| at 6:20 AM
जान लेना नही हमने जान देना सीखा है
अब तक तो सीर्फ दूसरो के लीये जीना सीखा है
मोहब्बत के दरबार में बैठ कर रूमी ने
फ़क़त नीमबाज आंखों से पीना सीखा है
| at 6:09 AM
तू समां हुई और मैं परवाना हुआ
खुदा के बाद नाम तेरा ही लेता है रूमी
तेरे इश्क मैं इस कदर दीवाना हुआ
| at 11:37 AM
अब और गम के आंसू हम पीना नही चाहते,
हमारे हाले बेबस से तो तुम वाकिफ हो ऐ दोस्त,
जिंदगी
| at 7:15 PM
जिंदगी से अंत में हम उतना ही पाते हैं
जितना उसमे मेहनत की पूँजी लगते हैं!
पूँजी लगना संकट का सामना करना है
उसके हर इक पन्ने को उलट कर पढ़ना है
जिंदगी में गर हम आप ही आप रहे तो क्या रहे
फ़क़त खुशियों के लहरों में बहे तो क्या बहे
जिंदगी में है "रूमी" कभी खुसी तो कभी गम
जीना उसे आया जो किसी खुशी को न समझे कम !
पान (कुण्डलिया)
| at 8:11 PM
मेरे द्वारा रचित
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पान मान के खाइए, भले न चूना-खैर
दिल से दिल मिलाइए, हो न किसी से बैरहो न किसी से बैर,मिलकर रहें सब एक
सत्य-पथ पर चलकर काम करें कोई नेक
"रूमी" की है फरियाद, पाना है गर सम्मान
ऐसी वाणी बोलिए की दुश्मन खिलावे पान !
मनहर (सवैया)
| at 7:50 PM
nari
| at 4:35 AM
इसका पूरा हृदय ममता से भरा है
एकता !
| at 8:04 PM
देश का नागरिक पहले भारतीये है
मजदूर
| at 7:42 PM
दुनिया का आठवां अजूबा ताजमहल हों
राजाओं-महराजाओं का राजमहल हों
अजंता-अलोरा की दुर्गम गुफाएं हों
या कुतुब मीनार जैसी अट्टालिकायें हों
ये सब है मजदूरों के अथक परिश्रम से
है विकास सम्भव सिर्फ़ इन्हीं के श्रम से
दूसरो के लिए मकान ये ही बनते हैं
परन्तु अपना ही घर बना नहीं पाते हैं
औरों को बुनकर कई वस्त्र पहनाते हैं
गो की ख़ुद इक लगोंटी को तरस जाते हैं
इनके दशा का एक कारन है अधिक गरीबी
है नहीं इनका कोई मददगार करीबी
करना होगा मजदूरों को भी हमें सिक्छित
तब कहीं हो सकेगा भारत का भविष्य सुरक्छित !
गुरबत के पहाड़ !
| at 4:46 AM
इक दिन ये गुरबत के पहाड़ भी हिल जायेंगे
हमारे अपने इक बार फिर हमसे मिल जायेंगे
वक्त से पहले इस दुनिया में कुछ नही होता "रूमी"
इक दिन हमारे किश्मत के फूल भी खिल जायेंगे!
उफ़ इन्सानिअत!
| at 9:47 PM
यह कहकर दिल ने हौसले बढाये हैं
ग़मों के बाद ही खुशियों के साये हैं
गर्दिस मैं जिसको भी सदा दिया हमने
सबने अपने पैर पीछे को हटाये हैं
क्या कहें, किस्से कहें हम अपनी दास्ताँ
यहाँ तो सब के ही चेहरे मुरझाये हैं
उनका तो महज इक दिल ही टूटा
हमने तो आंखों से लहू बहाए हैं
फ़क़त इक इंसानियत के खातिर "रूमी"
हजारों चोट हमने दिल पर खाए हैं !!
| at 3:14 AM
कैसी है बेखबरी किस खल्जान में है
अपनी तलवार जब अपने म्यान में है
खिंजा के बाद बहार भी आती है ज़रूर
फिजा में घोल कर ज़हर तू किस गुमान में है
वह जो खुरंचता है मांग का सिन्दूर यहाँ
उसी का बोलबाला सारे जहाँ में है
ज़माना हो चला है आज मेरा दुश्मन
न जाने कैसा खर मेरी जबान में है
तल्खियां सब उल्फत में बदल जाएँगी "रूमी"
गर शौक-ऐ-गुफ्तगू हमारे दरम्यान में है।
शेर खान "रूमी"
काशी हिंदू विश्यविद्यालय
बनारस