मजदूर


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

दुनिया का आठवां अजूबा ताजमहल हों

राजाओं-महराजाओं का राजमहल हों


अजंता-अलोरा की दुर्गम गुफाएं हों

या कुतुब मीनार जैसी अट्टालिकायें हों


ये सब है मजदूरों के अथक परिश्रम से

है विकास सम्भव सिर्फ़ इन्हीं के श्रम से


दूसरो के लिए मकान ये ही बनते हैं

परन्तु अपना ही घर बना नहीं पाते हैं


औरों को बुनकर कई वस्त्र पहनाते हैं

गो की ख़ुद इक लगोंटी को तरस जाते हैं


इनके दशा का एक कारन है अधिक गरीबी

है नहीं इनका कोई मददगार करीबी


करना होगा मजदूरों को भी हमें सिक्छित

तब कहीं हो सकेगा भारत का भविष्य सुरक्छित !

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