उफ़ इन्सानिअत!

यह कहकर दिल ने हौसले बढाये हैं
ग़मों के बाद ही खुशियों के साये हैं

गर्दिस मैं जिसको भी सदा दिया हमने
सबने अपने पैर पीछे को हटाये हैं

क्या कहें, किस्से कहें हम अपनी दास्ताँ
यहाँ तो सब के ही चेहरे मुरझाये हैं

उनका तो महज इक दिल ही टूटा
हमने तो आंखों से लहू बहाए हैं

फ़क़त इक इंसानियत के खातिर "रूमी"
हजारों चोट हमने दिल पर खाए हैं !!

  • Digg
  • Del.icio.us
  • StumbleUpon
  • Reddit
  • RSS
Read Comments




कैसी है बेखबरी किस खल्जान में है

अपनी तलवार जब अपने म्यान में है

खिंजा के बाद बहार भी आती है ज़रूर

फिजा में घोल कर ज़हर तू किस गुमान में है

वह जो खुरंचता है मांग का सिन्दूर यहाँ

उसी का बोलबाला सारे जहाँ में है

ज़माना हो चला है आज मेरा दुश्मन

न जाने कैसा खर मेरी जबान में है

तल्खियां सब उल्फत में बदल जाएँगी "रूमी"

गर शौक-ऐ-गुफ्तगू हमारे दरम्यान में है।



शेर खान "रूमी"

काशी हिंदू विश्यविद्यालय

बनारस


  • Digg
  • Del.icio.us
  • StumbleUpon
  • Reddit
  • RSS
Read Comments