उफ़ इन्सानिअत!
यह कहकर दिल ने हौसले बढाये हैं
ग़मों के बाद ही खुशियों के साये हैं
गर्दिस मैं जिसको भी सदा दिया हमने
सबने अपने पैर पीछे को हटाये हैं
क्या कहें, किस्से कहें हम अपनी दास्ताँ
यहाँ तो सब के ही चेहरे मुरझाये हैं
उनका तो महज इक दिल ही टूटा
हमने तो आंखों से लहू बहाए हैं
फ़क़त इक इंसानियत के खातिर "रूमी"
हजारों चोट हमने दिल पर खाए हैं !!
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