कैसी है बेखबरी किस खल्जान में है
अपनी तलवार जब अपने म्यान में है
खिंजा के बाद बहार भी आती है ज़रूर
फिजा में घोल कर ज़हर तू किस गुमान में है
वह जो खुरंचता है मांग का सिन्दूर यहाँ
उसी का बोलबाला सारे जहाँ में है
ज़माना हो चला है आज मेरा दुश्मन
न जाने कैसा खर मेरी जबान में है
तल्खियां सब उल्फत में बदल जाएँगी "रूमी"
गर शौक-ऐ-गुफ्तगू हमारे दरम्यान में है।
शेर खान "रूमी"
काशी हिंदू विश्यविद्यालय
बनारस
1 comments:
amazing!
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